Friday, March 5, 2010

लिखते-लिखते हो गए कितने साल

लिखते-लिखते हो गए कितने साल,
पर वो हुआ ना बेहाल,
रंग उसके बदलते गए बार-बार,
फिर भी अपने कर्म करता रहा वो हर बार,
सोचने की भी उसमे फुर्सत नहीं,
समझने की भी चाह नहीं,
उसका अपना कोई धर्म नहीं,
उसका अपना कोई उसूल नहीं,
जिसके हाथ आए उसका हो जाये,
जिसके साथ रहे उसका बन जाये,
इतना मत सोच प्यारे,
कलम के जलवे है निराले.

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