Thursday, June 26, 2014

रूह है फरार  

मन में है चाह। ...  
पर कहाँ है राह!?! 

डगमग डगमग करके 
पहुंची थी एक मक़ाम …  
फिर मचल मचल के देखे 
कुछ और सपने सुहान  …  

चल पड़ी उस राह पे  
बिना सोचे उसका अंजाम   
अब खड़ी हूँ चौराहे पर 
बिन पता और नाम  …  

कश्मकश में ज़िन्दगी  … 
ये कैसी बंदगी ???
हौसले को बंद कर कारागार  … 
रूह है फरार!!! 

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