रूह है फरार
मन में है चाह। ...
पर कहाँ है राह!?!
डगमग डगमग करके
पहुंची थी एक मक़ाम …
फिर मचल मचल के देखे
कुछ और सपने सुहान …
चल पड़ी उस राह पे
बिना सोचे उसका अंजाम
अब खड़ी हूँ चौराहे पर
बिन पता और नाम …
कश्मकश में ज़िन्दगी …
ये कैसी बंदगी ???
हौसले को बंद कर कारागार …
रूह है फरार!!!