Sunday, September 15, 2019

पिंजरा 

बोले चल उड़जा,
जहाँ मन करे तू ,
पँख बाँध कर बोल रहे थे ,
ये न जान पाई  वो.

चेहक ले जितना चाहें  तू ,
लचक ले जितना  चाहें ,
चोंच दबा कर  बोल रहे थे ,
ये न समझ पाई वो.

खुशी-खुशी खिलखिलाई वो ,
लेहर जैसे पँख फड़फड़ाई वो ,
बिना समझे,बिना जानें ,
पिंजरे  में  थी जन्माई  वो.



Thursday, June 26, 2014

रूह है फरार  

मन में है चाह। ...  
पर कहाँ है राह!?! 

डगमग डगमग करके 
पहुंची थी एक मक़ाम …  
फिर मचल मचल के देखे 
कुछ और सपने सुहान  …  

चल पड़ी उस राह पे  
बिना सोचे उसका अंजाम   
अब खड़ी हूँ चौराहे पर 
बिन पता और नाम  …  

कश्मकश में ज़िन्दगी  … 
ये कैसी बंदगी ???
हौसले को बंद कर कारागार  … 
रूह है फरार!!! 

Monday, July 22, 2013

      जब तुम्हे देखू 

जब तुम्हे देखू  , तो सोच में डूब जाऊ,
जब तुम्हे सोचू  , तो और खो जाऊ,
कभी मुस्कुराऊ , कभी सहम जाऊ,
कभी तुम्हारी हरकतों से भयभीत हो जाऊ

सपनो में भी चैन ना देते मुझे,
भुलाने की कोशिश में नाकाम करते मुझे।

चाहते क्या हो मुझसे,
अब बता भी जाओ…
ऐ ज़िन्दगी !!! मुझे
अब और ना तडपाओ। 

Wednesday, December 21, 2011

अन्जानी

नौकरी की आढ़ में,
उलझे कुछ इस तरह,
भेडों के बीच में,
कछुए की तरह,
जाना था कहां??
पहुचे है कहां??
किस्मत की बात भी,
समझ न आये यहाँ....

ये पहेली उलझी सी,
मै खुद भुजी-भुजी  सी,
अब क्या कहुं मै आगे??
जब खुद से हू अन्जानी सी....... 

Monday, October 17, 2011

कौन है जिम्मेदार??????

पैसा.... पैसा.... पैसा....
ये है चीज़ ऐसा 
जो हर इंसान के 
सीने में है धड़कता

कभी अभिमान तो कभी इज्जत 
को है मरोड़ता
अरे छोड़ो ये तो रूह 
को है निचोड़ता 

पैसा पैसा पैसा लाता ऐसा फुआर 
दोस्ती को छोड़ो रिश्तो में लाता दरार 

 इसके आगे फिर भी है 
झुक रहे इंसान 
इसके लिए अपने आप को है  
बेच रहे इंसान  

थम कर देता है  ज़िन्दगी की हर रफ़्तार 
बढती इसकी इज्ज़त फिर भी  
तुगुनी हर बार 

इसके लिए आखिर कौन है जिम्मेदार??????
सवाल उठ रहा मन में बार बार........



Saturday, June 18, 2011

जन्मदिन-मुबारक

हर दिन, हर रात 
ये तो है रोज़ की बात 
पर आज के दिन में है वो साज 
जिसके लिए नही कोई अल्फाज़

अभी न हुआ हो आपको ज्ञात 
तो करना पड़ेगा पर्दा-फाश 

क्युकि.....
धवल का जन्मदिन है आज..

स्ट्रीट लाइट

 दिल की बती बुझ चुकी थी 
घर की फ्युस भी उड़ चुकी थी

मोंबतिया पिघल चुकी थी 
माचिस की तीली राख हो चुकी थी 

अन्धकार ने डेरा जमा लिया था 
राहो पर नारा लगा लिया था

तभी हुई स्ट्रीट लाइट की एन्टरी
और बंद की अन्धकार की पान्ट्री...