पिंजरा
बोले चल उड़जा,

जहाँ मन करे तू ,
पँख बाँध कर बोल रहे थे ,
ये न जान पाई वो.
चेहक ले जितना चाहें तू ,
लचक ले जितना चाहें ,
चोंच दबा कर बोल रहे थे ,
ये न समझ पाई वो.
खुशी-खुशी खिलखिलाई वो ,
लेहर जैसे पँख फड़फड़ाई वो ,
बिना समझे,बिना जानें ,
पिंजरे में थी जन्माई वो.