Sunday, September 15, 2019

पिंजरा 

बोले चल उड़जा,
जहाँ मन करे तू ,
पँख बाँध कर बोल रहे थे ,
ये न जान पाई  वो.

चेहक ले जितना चाहें  तू ,
लचक ले जितना  चाहें ,
चोंच दबा कर  बोल रहे थे ,
ये न समझ पाई वो.

खुशी-खुशी खिलखिलाई वो ,
लेहर जैसे पँख फड़फड़ाई वो ,
बिना समझे,बिना जानें ,
पिंजरे  में  थी जन्माई  वो.